बैड बॉय
कलाकार : नमोशी चक्रवर्ती , अमरीन , सास्वत चटर्जी , राजेश शर्मा , दर्शन जरीवाला , राजपाल यादव और जॉनी लीवर
लेखक : संजीव अरविंद और राजकुमार संतोषी
निर्देशक : राजकुमार संतोषी
निर्माता : अंजुम कुरैशी और साजिद कुरैशी
रिलीज : 28 अप्रैल 2023
रेटिंग : 2/5
कलात्मक फिल्मों के दिग्गज निर्देशक गोविंद निहलानी के सहायक के रूप में अपना फिल्मी सफर शुरू करने वाले राजकुमार संतोषी ने हिंदी सिनेमा को चंद बेहतरीन फिल्में दी हैं। सनी देओल ने उन्हें फिल्म ‘घायल’ से स्थापित होने का मौका दिया। बॉबी देओल की बड़े परदे पर फिल्म ‘बरसात’ से लॉन्चिंग के लिए उन पर भरोसा किया। रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ की फिल्म ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ उनकी आखिरी कामयाब फिल्म मानी जाती है। बीच में उन्होंने ‘द लेजेंड ऑफ भगत सिंह’ और ‘खाकी’ जैसी ऐसी फिल्में भी दी जिससे लगने लगा था कि वह बदलते दौर के साथ खुद को बदल रहे हैं। निर्माता साजिद कुरैशी ने अपनी बेटी अमरीन और सुपरस्टार रहे मिथुन चक्रवर्ती के बेटे नमोशी की लॉन्चिंग के लिए उन पर शायद इसी के चलते भरोसा किया लेकिन फिल्म ‘बैड बॉय’ की सबसे कमजोर कड़ी अगर कोई है, तो वह राजकुमार संतोषी की कहानी और उनका निर्देशन ही है। अपनी पहली फिल्म के हिसाब से नमोशी और अमरीन दोनों ने कैमरे के सामने काफी मेहनत की है और आने वाले दिनों के लिए उम्मीद भी जगाई है।

राजकुमार संतोषी की असंतोषजनक कहानी
साल 1985 में मिथुन चक्रवर्ती और पद्मिनी कोल्हापुरे की फिल्म ‘प्यार झुकता नहीं’ सुपरहिट हुई थी। फिल्म की कहानी एक गरीब लड़के और एक रईस परिवार की लड़की के प्रेम की कहानी है जिसमें लड़की का पिता दोनों के बीच गलतफहमियां पैदा करने की आखिर तक कोशिश करता दिखता है। फिल्म ‘बैड बॉय’ का डीएनए भी यही है। यहां लड़का एक कबाड़ी वाले का बेटा है। बेटी एक ऐसे क्वालिटी कंट्रोलर की बेटी है जिसके लिए जीवन में ‘हाई क्वालिटी और हाई स्टैंडर्ड’ ही सब कुछ है। बस यहां गलतफहमियां बनने से पहले ही हीरो अपनी हाजिरजवाबी से उनके जवाब तलाश लेता है। कहानी खुद राजकुमार संतोषी ने लिखी है। पृष्ठभूमि कर्नाटक की है। लड़की का परिवार बंगाली है। और, लड़का मुंबई के किसी टपोरी जैसा दिखता है। न्यू मिलेनियल्स की पसंद के हिसाब से फिल्म की कहानी कम से कम 30 साल पुरानी है।

संपादन ने फिल्म को बचाया
ख़ैर, एक कमजोर कहानी के बावजूद राजकुमार संतोषी ने एक ऐसी फिल्म बनाने की कोशिश की है जिसे पूरे परिवार के साथ बैठकर कम से कम एक बार तो देखा ही जा सकता है। और, इसके लिए तारीफ के जितने हकदार फिल्म के कलाकार हैं, उतनी ही तारीफ फिल्म के एडीटर की भी बनती है। फिल्म की पैकेजिंग शायद नए सिरे से दोबारा की गई है, बीच बीच में ग्राफिक्स का इस्तेमाल अच्छा है। और, शूटिंग के दौरान बनी रही दिक्कतों को काफी हद तक इसके चलते दूर भी किया गया है। स्टीवन बर्नार्ड और उनकी टीम इसके लिए तारीफ के हकदार हैं। रही बात संतोषी के निर्देशन की तो पूरी फिल्म में कहीं वह अपने निर्देशन की छाप छोड़ पाने में पूरी तरह विफल रहे हैं। कभी दर्शक पोस्टर पर सिर्फ उनका नाम पढ़कर फिल्म देखने के लिए लालायित हो जाते रहे हैं, लेकिन ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’ के बाद से उनका करिश्माई अंदाज गायब है, और उसका सीधा नुकसान फिल्म ‘बैड बॉय’ को उठाना पड़ सकता है।

पहली फिल्म में फर्स्ट डिवीजन पास नमोशी
अपने जमाने के सुपरस्टार रहे मिथुन चक्रवर्ती के दूसरे बेटे नमोशी फिल्म ‘बैड बॉय’ से बतौर हीरो अपना करियर शुरू कर रहे हैं। मिमोह की तुलना में नमोशी बेहतर तैयारी के साथ कैमरे के सामने उतरे हैं। उनके अभिनय में एक लय नजर आती है। कहीं कहीं शुरुआती दिनों के मिथुन की झलक भी उनमें दिखती है। संवाद अदायगी फिल्म के पहले हिस्से में उनकी थोड़ी कमजोर दिखती है लेकिन कॉमेडी छोड़कर जब बात गंभीर अभिनय की आती है तो नमोशी उसमें फर्स्ट डिवीजन पास होने भर को नंबर हासिल कर लेते हैं। खासतौर से क्लाइमेक्स में अस्पताल वाले उनके सीन गौर करने लायक हैं और ये दृश्य ही नमोशी से आने वाले दिनों की उम्मीद भी जगाते हैं। जिस दौर में बड़े बड़े कलाकार लिप सिंक गानों से परहेज करते हों, नमोशी ने इस चुनौती को भी फिल्म ‘बैड बॉय’ में स्वीकार किया है। वह नाचते अच्छा हैं और अपने पिता मिथुन के साथ नाचते हुए तो वह और भी ‘क्यूट’ लगते हैं।

अमरीन के चेहरे पर दिखी ताजगी
फिल्म के निर्माता साजिद व अंजुम कुरैशी की बेटी अमरीन को अगर प्रोड्यूसर की बेटी की पहचान से अलग हटकर देखें तो एक डेब्यू फिल्म के हिसाब से वह भी प्रभावित करती हैं। खुद को एक संस्कारी बेटी के तौर पर पेश करने की चुनौतियां कहानी के अनुसार उनके सामने रही हैं लेकिन उनकी ईमानदार कोशिशों पर दाद ही निकलती है। दुर्घटना में घायल होने के बाद वाले दृश्यों में उनकी संवाद अदायगी भले कमजोर दिखती हो पर पहली फिल्म के ग्रेस मार्क उनको दिए जा सकते हैं। उनके चेहरे पर ताजगी है और वह आने वाले दिनों में खुद को बेहतर करते जाने के संकेत भी देती हैं। फिल्म को संभालने में जॉनी लीवर के किरदार पोल्टू ने काफी जोर लगाया है और उनका पूरा ट्रैक इंटरवल के बाद फिल्म को संभालता भी है। राजपाल यादव महज एक सीन के लिए फिल्म में क्यों हैं, स्पष्ट नहीं हो पाता। सास्वत चटर्जी और दर्शन जरीवाला के अहं का टकराव फिल्म के जीवन दर्शन की अच्छी अंतर्कथा है और दोनों ने अपने अपने अभिनय का असर इसमें छोड़ा है।

डेब्यू फिल्म जैसा संगीत नहीं बना पाए हिमेश
हिमेश रेशमिया ने अरसे बाद किसी फिल्म के पूरे संगीत की जिम्मेदारी संभाली है और दो नए सितारों की लॉन्च फिल्म के लिए कदम थिरकाने वाला संगीत बनाने की पूरी कोशिश भी की है। दिक्कत बस ये है कि उनके पास ओरिजिनल संगीत रच पाने वाले टीम नहीं है। फिल्म का सबसे अच्छा गाना ‘जनाबे आली’ है, अरिजीत सिंह का गाया गाना ‘तेरा हुआ’ फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ के लिए गाए उन्हीं के गाने की याद दिलाने लगता है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बहुत ही औसत है और फिल्म के कला निर्देशन व कॉस्ट्यूम विभाग ने भी फिल्म को मौजूदा दौर की फिल्म बनाने के लिए मेहनत नहीं की है।